फल्गु ऋषि तीर्थ स्थित मंदिर और घाट फरल | Falgu Tirth Mela Faral History
फल्गु तीर्थ, नामक यह तीर्थ कैथल से लगभग 21 कि.मी. दूर फरल नामक ग्राम में स्थित है। फरल ग्राम का नामकरण भी सम्भवतः फलकी वन से ही हुआ प्रतीत होता है जहां फल्गु ऋर्षि निवास करते थे। वामन पुराण में काम्यक वन, अदिति वन, व्यास वन, सूर्यवन, मधुवन एवं शीत वन के साथ फलकीवन का भी उल्लेख हुआ है। यह सभी सात वन प्राचीन कुरुक्षेत्र भूमि के प्रमुख वन थे।
फलकीवन तीर्थ के कारण गांव में नाम पड़ा फरल :
कुरुक्षेत के सात वनों में प्रसिद्ध फलकीवन में ही फल्गु तीर्थ है। जोगांव फरल में स्थित यह तीर्थस्थान है। फल्गु तीर्थ के कारण ही गांव का नाम भी फरल पड़ा। इस तीर्थ का वर्णन महाभारत, वामन पुराण मत्स्य पुराण तथा नारद पुराण में उपलब्ध होता है। महाभारत एवं पौराणिक काल में इस तीर्थ का महत्व अपने चरम उत्कर्ष पर था।
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इस तीर्थ का वर्णन महाभारत, वामन पुराण, मत्स्य पुराण तथा नारद पुराण में भी मिलता है। महाभारत एवं वामन पुराण दोनों में यह तीर्थ देवताओं की तपस्या की विशेष स्थली के रूप में उल्लिखित है। महाभारत वन पर्व में तीर्थयात्रा प्रसंग के अन्तर्गत इस तीर्थ के महत्त्व के विषय में स्पष्ट उल्लेख है। महाभारत के अनुसार इस तीर्थ में स्नान करने एवं देवताओं का तर्पण करने से मनुष्य को अग्निष्टोम तथा अतिरात्र यज्ञों के करने से भी कहीं अधिक श्रेष्ठतर फल को प्राप्त होता है।
फल्गु तीर्थ पर सोमवती अमावस्या आने पर लगता है मेला :
आश्विन मास में कृष्ण पक्ष यानी श्राद्ध पक्ष की अमावस्या सोमवार को आने पर फल्गु तीर्थ पर मेला लगाया जाता है। श्राद्ध पक्ष की सभी 16 तिथियों के अनुसार लोग अपने पितरों की आत्मिक शांति के लिए पिंडदान व तर्पण करवाने आते हैं। इस दौरान यहां पर पिंडदान व तर्पण करवाने पर गयाजी तीर्थ के समान फल मिलता है। महाभारत काल में पांडवों ने तीर्थ पर अपने पितरों के पिंडदान व तर्पण के लिए 12 साल इंतजार किया था। इस दौरान एक बार भी श्राद्ध पक्ष में सोमवती अमावस्या नहीं आई। अब तीर्थ पर विदेशों में गए लोग भी पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।
वामन पुराण के अनुसार सोमवार की अमावस्या के दिन इस तीर्थ में किया गया श्राद्ध पितरों को वैसा ही तृप्त और सन्तुष्ट करता है जैसा कि गया में किया गया श्राद्ध। कहा जाता है कि मात्र मन से जो व्यक्ति फलकीवन का स्मरण करता है निःसन्देह उसके पितर तृप्त हो जाते हैं।
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गयासुर ने हराने के बाद दहेज में दिया था पितृतृप्ति वर : फलकीवन (कैथल) में फल्गु ऋषि तप कर रहे थे। कहा जाता है कि उनके तपस्या काल में प्रसिद्ध गयाजी तीर्थ बिहार पर गयासुर का राज था। गयासुर की यह प्रतिज्ञा थी कि जो उसे युद्ध में पराजित कर देगा उसके साथ वह अपनी तीनों पुत्रियों का विवाह करेगा। उस समय फल्गु तीर्थ पर फल्गु ऋषि तपस्या कर रहे थे। गयासुर से त्रस्त लोगों और देवताओं के अनुरोध से जब उन्हें गयासुर की प्रतिज्ञा का पता चला गृहस्थ आश्रम को सर्वश्रेष्ट समझकर वहां गए। शास्त्रार्थ में गयासुर को पराजित कर उसकी तीनों कन्याओं के साथ विवाह कर लिया और गृहस्थी बने। दहेज में गयासुर ने गयाजी में पितृतृप्ति के लिए किए जाने वाले कार्यो में मिलने वाले फल का वरदान दिया।
फल्गु ऋषि सरोवर स्थित मंदिरों का निर्माण लाखौरी ईटों से हुआ है
इस पावन तीर्थ पर फल्गु ऋषि के मंदिर के अलावा इस प्रसिद्ध तीर्थ पर कई सुंदर मंदिर हैं। सरोवर के घाट के पास अष्टकोण आधार पर निर्मित 17वीं शताब्दी की मुगल शैली में बना शिव मंदिर है जो लगभग 30 फुट ऊंचा है। सरोवर की लंबाई 800 फुट और चौड़ाई 300 फुट है। मुगल शैली में एक और शिव मंदिर है जो लगभग 20 फुट ऊंचा है जो आकार में वर्गाकार है। वर्ग की एक भुजा 9 फुट 6 इंच है। राधा-कृष्ण का भी एक मंदिर है, जो नागर शैली में बना हुआ है। इसका शिखर शंकु आकार का है। इन मंदिरों के निर्माण में लाखौरी ईटों से किया गया है। परवर्ती काल में इनका जीर्णोद्धार आधुनिक ईटों के द्वारा किया गया है। घाट के पास ही एक अत्यंत प्राचीन वट वृक्ष है। गांव फरल से 2 किमी के संपर्क मार्ग पर पणिश्वर तीर्थ पवन पुत्र हनुमान का बना है।
फल्गु ऋषि तीर्थ स्थित मंदिर कैसे पहुंचें:
हवाई ज़हाज से
कैथल से निकटतम हवाई अड्डा चंडीगढ़ है जो लगभग है 120 किमी दूर है | इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, दिल्ली 190.6 किलोमीटर दूर है।
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ट्रेन द्वारा
रेलवे स्टेशन, कैथल फरल से 22.3 किमी दूर है।
सड़क के द्वारा
कैथल से फरल की दूरी 20.7 किमी है और फरल पहुंचने में 33 मिनट लगते हैं।
Map of Falgu Tirth
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